सुशांत सिंह राजपूत आत्महत्या के प्रभाव

सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या से एक बात स्पष्ट हो गई है कि बॉलीवुड में भाई भतीजावाद और गुटबाजी किस हद तक बढ़ चुकी है, अब वो समय आ गया है जब सोशल मीडिया के माध्यम से हर छोटी बड़ी चीज खुल कर पब्लिक के सामने आने लगी है।
लोग सलमान खान, एकता कपूर, करण जौहर आदि का खुल कर विरोध कर रहे है, इनकी फिल्मों का बॉयकॉट होगा तब इन्हे अक्ल आएगी। ये लोग अपने आपको फिल्म इंडस्ट्री का कर्ताधर्ता समझने लगे है। इनके तलवे चाटे इनकी हा में हा मिलाई जाए तब तक सब सही रहता है पर कोई इंसान अपना निर्णय खुद ले ले जो इनको रास ना आए तो ये उसका कैरियर तबाह करने में लग जाते है। अब धीरे धीरे परिदृश्य बदल रहा है, जो गलत होगा उसे उसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा।
शाहरुख खान की आखिरी कुछ फिल्में इसका अच्छा उदाहरण है। गलत बयानबाजी और पाकिस्तानी प्रेम की वजह उनकी फिल्मों का बॉयकॉट हुआ, और इतना बड़ा बॉलीवुड का किंग धराशाई हो गया। फैन, डियर ज़िन्दगी, जब हैरी मेट सेजल, ज़ीरो जैसी कितनी ही फिल्में एक के बाद एक बॉक्स ऑफिस पर उल्टे मुंह गिरी।
सुशांत सिंह राजपूत आपको फिर भी खुदकुशी नहीं करनी चाहिए थी। क्योंकि फिल्म उद्योग में ऐसे भी उदाहरण है जो इन सबको पीछे छोड़ कर आगे बढ़े। आप बॉलीवुड के खिलाड़ी अक्षय कुमार से कुछ सीख सकते है, उन्हें भी ना अच्छे प्रोड्यूसर मिले ना डायरेक्टर ना किसी बड़े प्रोडक्शन का साथ। उनके साथ भी इसी तरह का व्यवहार किया जाता था पर उन्होंने हार नहीं मानी।
दिल तो पागल है के रोल के लिए जब अक्षय कुमार ने यशराज से अपना मेहनताना मांगा तो यश चोपड़ा ने उन्हें बोला की उन्हें अपने रोल के लिए पैसे नहीं मांगने चाहिए, यशराज प्रोडक्शन के साथ काम करना ही तुम्हारे लिए सौभाग्य है। इतना ही नहीं उन्हें दिल तो पागल है कि सफ़लता की पार्टी में भी नहीं बुलाया गया। वहीं अक्षय कुमार छोटे छोटे डायरेक्टर और प्रोडक्शन हाउस के साथ काम करके इतना आगे निकल गया। उसने इन लोगो के पिछवाड़े में लात मार कर खुद का ही प्रोडक्शन हाउस बनाया। आज यहीं चोपड़ा और जौहर अक्षय कुमार के आगे काम करने के लिए भीख मांगते है।
और भी कितने उदाहरण है राजकुमार राव, कंगना रनौत, आयुष्मान खुराना, विक्की कोशल जो अपनी मेहनत और लगन से बिना किसी गॉडफ़ादर के सफलता की उचाई पर पहुंचे जहां से ये लोग छोटे दिखते है।
आत्मविश्वास हमेशा साथ रखो।

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